चिकित्सकों की तत्परता ने बचा ली गर्भवती महिला की जान

 
• गर्भ में ही बच्चे की हो गई थी मौत, रेफरल अस्पताल से पहुंची थीं जिला अस्पताल
• प्लेसेंटा प्रीविया के कारण पीड़ा के साथ रक्तस्राव अत्याधिक रूप से बढ़ गया था
• हिमोग्लोबिन का स्तर था काफी कम, नाजुक स्थिति में पति, ब्लड बैंक कर्मी और केयर इंडिया का मिला सहयोग
• जिला अस्पताल की महिला चिकित्सक डॉ. कविता व नर्सिंग कर्मियों ने दी महिला को नई जिंदगी 
 
जमुई, 29 अगस्त।
 
कोविड-19 के दौर में लोग न केवल कोरोना वायरस बल्कि अन्य गंभीर बीमारियों से भी ग्रसित हैं। खासकर नवजात और गर्भवती महिलाओं की इस वक्त सबसे ज्यादा देखभाल की जरूरत है।  यद्यपि, स्वास्थ्य विभाग व अस्पताल प्रबंधन द्वारा कोरोना के साथ अन्य गंभीर बीमारियों से ग्रसित लोगों के इलाज पर भी पूरा ध्यान दिया जा रहा है। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से लेकर जिला अस्पताल तक बेहतर रूप से सुविधाएं दी जा रही हैं। अस्पताल आने वालों की पूर्ण देखभाल और उनके जीवन की रक्षा का दायित्व स्वास्थ्य कर्मी, नर्स और डॉक्टर पूर्ण रूप से निभा रहे हैं। इसी क्रम में जिला अस्पताल जमुई के डॉक्टर और नर्सों ने एक महिला की जान बचाकर मिसाल पेश की है। दरअसल, महिला गर्भवती थी और गर्भाशय में ही उनके बच्चे की मौत हो गई थी। इसके बाद अत्याधिक रक्तस्त्राव से उनकी स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही थी। तुरंत परिजन उन्हें लेकर रेफरल अस्पताल, लक्ष्मीपुर पहुंचे। यहां स्थिति बिगड़ती देख उन्हें जिला अस्पताल रेफर कर दिया गया। इधर, जिला अस्पताल आते-आते उनकी स्थिति और खराब हो गई। गर्भवती की स्थिति गंभीर होने के कारण उचित उपचार के लिए उच्च संस्था में रेफर करने की आवश्यकता थी। लेकिन चिकित्सकों एवं कर्मियों ने गर्भवती महिला की नाजुक स्थिति को देखते हुए वहीं इलाज करने का निर्णय लिया। इसके बाद गर्भवती की उपचार की व्यवस्था में सभी लग गए। उनका प्रयास रंग लाया और ना केवल महिला की जान बची, बल्कि कठिन समय में चिकित्सकों और स्वास्थ्य कर्मियों ने समाज के लिए एक मिसाल भी पेश की। 
 
गर्भ में ही बच्चे की हो गई थी मौत :
 
जमुई के हरमा पहाड़ी, लक्ष्मीपुर निवासी मनोज मांझी की पत्नी रेखा देवी (24 वर्षीय) गर्भवती थी। कुछ दिनों से पीड़ा के साथ रक्तस्राव काफी बढ़ गया। पत्नी की लगातार खराब होती स्थिति को देखते हुए मनोज मांझी उन्हें लेकर उपचार के लिए रेफरल अस्पताल, लक्ष्मीपुर पहुंचे। यहां प्राथमिक उपचार के बाद उनकी खराब स्थिति को देखते हुए बेहतर इलाज के लिए उन्हें जिला अस्पताल रेफर कर दिया गया। पत्नी की जान बचाने के लिए 24 अगस्त की सुबह 11:40 बजे मनोज मांझी उन्हें लेकर जिला अस्पताल के लिए निकले पड़े। दोपहर के करीब एक बजे वे जिला अस्पताल पहुंचे। उस वक्त जिला अस्पताल में सिस्टर अनीता एवं डोली मौजूद थीं। उन्होंने तत्काल गर्भवती का उपचार शुरू किया। बीपी और हिमोग्लोबिन चेक किया। हिमोग्लोबिन का स्तर काफी कम (6.2) था। जांच के दौरान पता चला कि गर्भवती को प्लेसेंटा प्रीविया है, और बच्चे की मौत हो चुकी है। इसके कारण उनकी स्थिति लगातार खराब होती चली जा रही है। उन्होंने इसकी जानकारी तत्काल अस्पताल की महिला चिकित्सक डॉक्टर कविता को दी। इस दौरान महिला का काफी रक्तस्राव हो चुका था। उन्हें तत्काल ब्लड चढ़ाने की जरूरत थी। ऐसे में उनके पति ने उन्हें एक यूनिट ब्लड दिया एवं रेखा देवी को ब्लड चढ़ाया गया। वहीं इलाज के दौरान दूसरे शिफ्ट में सिस्टर ​बिंदा कुमारी और रंजू कुमारी तथा तीसरे शिफ्ट में सिस्टर मीना कुमारी और बबीता कुमारी ने रेखा देवी का पूरा ख्याल रखा।
 
क्या होता है प्लेसेंटा प्रीविया:
गर्भावस्था के दौरान, यदि गर्भनाल इस तरह से विकसित होती है कि यह पूरी तरह से या आंशिक रूप से प्लेसेंटा ग्रीवा को ढक देती है, तो इस स्थिति को 'प्लेसेंटा प्रीविया' या 'लो–लाइंग प्लेसेंटा' कहा जाता है। इससे प्रसव के दौरान शिशु और मां को खतरा रहता है, क्योंकि गर्भाशय ग्रीवा खुलने पर यह क्षतिग्रस्त हो सकती है। गर्भनाल समय से पहले प्लेसेंटा से अलग हो सकती है जिससे मां को गंभीर रक्तस्राव होता है जो बच्चे को भी प्रभावित कर सकता है। गंभीर स्थिति में बच्चे और मां दोनों की जान जाने का खतरा बढ़ जाता है। 
 
डॉक्टर और नर्सों की बेहतर देखभाल रंग लायी:
गर्भवती की स्थिति को देखते हुए एक समय जिला अस्पताल से भी उन्हें रेफर करने की बात हुई। लेकिन, लगातार नाजुक होती स्थिति को देखते हुए उनके इलाज का जिम्मा डॉक्टर कविता और उनकी टीम ने उठाया। गर्भवती को सामान्य स्थिति में लाने के लिए बल्ड की जरूरत हुई तो केयर इंडिया और ब्लड बैंक के सहयोग से बल्ड उपलब्ध कराया गया। एक यूनिट ब्लड महिला को रात में दिया गया। वहीं इस दौरान डॉक्टर और नर्सों की बेहतर देखभाल और इलाज से रेखा देवी की स्थिति थोड़ी सामान्य हुई और इसी दौरान सामान्य डिलीवरी सुनिश्चित हो पाई। इस सफलता के बाद से रेखा देवी के स्वास्थ्य में लगातार सुधार आता गया। अगले दिन सुबह उन्होंने हल्का भोजन भी लेना शुरू कर दिया। हालांकि अत्याधिक रक्तस्राव और अधिक कमजोरी की वजह से अभी वह डॉक्टरों और नर्सों की निगरानी में स्वास्थ्य लाभ ले रही हैं। वहीं केयर इंडिया के सदस्य भी लगातार उनके संपर्क में रहते हुए हालचाल ले रहे हैं।
 
अत्याधिक रक्तस्राव से महिला की स्थिति नाजुक बन गई थी:
जिला अस्पताल की महिला चिकित्सक डॉक्टर कविता बताती हैं गर्भवती को जब उन्होंने देखा तो उनकी स्थिति काफी खराब हो चुकी थी। गर्भ में ही बच्चे की मौत हो गई थी। साथ ही अत्याधिक रक्तस्राव से महिला की स्थिति नाजुक बन गई थी। परेशानी बढ़ती ही जा रही थी। ऐसी स्थिति में  जो सुविधाएं अस्पताल में उपलब्ध थी उसी के तहत इलाज शुरू कर दी गई। सभी कर्मियों ने भी तत्परता दिखाई। अंतत: सबकी मेहनत रंग लाई और ना केवल महिला की जान बची, बल्कि बिना ऑपरेशन के बच्चा मां के गर्भ से भी बाहर आ गया। समय पर इलाज नहीं होता तो महिला की जान भी जा सकती थी।
 
डॉक्टर और स्वास्थ्य कर्मियों ने जिंदा रखी उम्मीद:
रेखा देवी के पति मनोज मांझी कहते हैं पत्नी की बिगड़ती स्थिति को देखते हुए एक समय वह काफी घबरा गए थे। रेफरल अस्पताल से जिला अस्पताल और वहां से भी रेफर की बात सुनकर और काफी परेशान हो गए। उनकी उम्मीद दम तोड़ती जा रही थी, लेकिन जिला अस्पताल के चिकित्सक, कर्मी एवं केयर इंडिया के सहयोग और बेहतर इलाज से पत्नी की जान बच गई। वह सबका धन्यवाद करते हुए कहते हैं कोविड 19 के दौर में भी स्वास्थ्य कर्मियों और डॉक्टरों की सेवा ने साबित किया है कि धरती पर ये भगवान के रूप में ही मौजूद हैं। इनकी सेवा का कोई मोल नहीं है।

रिपोर्टर

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