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टीबी से ठीक हुईं सरस्वती देवी पड़ोस के लोगों को भी सही पोषण के बारे में दे रहीं जानकारी
कटोरिया प्रखंड के कठौन गांव की है रहने वाली, छह महीने तक इलाज चला तो टीबी को दी मात
बांका, 15 दिसंबर
मैं जब बीमार पड़ी थी तो समझ में नहीं आ रहा था क्या करूं। लगातार खांसी हो रही थी। बलगम के साथ खून भी आ रहा था। घर के लोग कम पढ़े-लिखे हैं। वह भी कुछ बताने में सक्षम नहीं थे। मेरे मन में डर भी था। दो बेटे मजदूरी कर घर चलाते हैं। अगर कोई गंभीर बीमारी हुई तो उसके इलाज का खर्च कहां से आएगा। लेकिन आशा कार्यकर्ता रुक्मिणी देवी ने मेरे डर को खत्म कर दी। उन्होंने बताया कि आपको टीबी है और इसके इलाज पर कोई खर्च नहीं आएगा। सारा खर्च सरकार की तरफ से होगा। साथ ही उन्होंने पोषणयुक्त भोजन की सलाह दी। यह बड़ी सीख मुझे इलाज के दौरान मिला। अब तो मैं ठीक हो गई हूं, लेकिन पोषण का ध्यान रखती हूं। घर के साथ-साथ पड़ोस के लोगों को भी इसकी सलाह देती हूं।
यह कहना है कटोरिया प्रखंड के कठौन गांव की रहने वाली सरस्वती देवी का। वह छह माह पहले टीबी की चपेट में आ गई थीं। इलाज के बाद अब वह स्वस्थ हैं, लेकिन इस दौरान उन्हें जो अनुभव मिला उसका लाभ घर परिवार के लोग तो उठा ही रहे हैं। पड़ोस के लोगों को भी इससे फायदा पहुंच रहा है। दरअसल, टीबी के मरीज सघन आबादी वाले क्षेत्रों में ज्यादा मिलते हैं। वहां पर गरीबी और साक्षरता की कमी रहने के कारण लोग पौष्टिक भोजन लेने से महरूम रह जाते हैं। इसका नुकसान उन्हें स्वास्थ्य को लेकर उठाना पड़ता है। कुछ ऐसा ही अनुभव सरस्वती देवी को इलाज के दौरान मिला, जिसका फायदा अब उनके पड़ोसियों को भी मिल रहा है।
महिलाओं को अपने स्वास्थ्य से खिलवाड़ नहीं करना चाहिएः सरस्वती देवी कहती हैं, आशा मुझे कटोरिया रेफरल अस्पताल इलाज के लिए ले गईं। वहां पर जांच में टीबी होने की पुष्टि हुई और छह माह तक इलाज चलने के बाद मैं ठीक हो गई। लेकिन इलाज के दौरान मैंने यह सीखा कि महिलाओं को भी अपने स्वास्थ्य को लेकर खिलवाड़ नहीं करना चाहिए। आमतौर पर देखा जाता है कि गरीब परिवार की महिलाएं अपने स्वास्थ्य पर ज्यादा ध्यान नहीं दे पाती हैं। ऐसा नहीं करना चाहिए। स्वस्थ रहने के लिए सही पोषण बहुत जरूरी है। नहीं तो लोग टीबी की चपेट में भी आ सकते हैं। माना कि हम गरीब हैं। महंगे चीज नहीं खरीद सकते, लेकिन हरी सब्जियां, चना, साग इत्यादि चीजें जो आसानी से उपलब्ध हैं। उसका तो सेवन कर ही सकती हूं। अब मैं यही बात घर के लोगों के साथ-साथ आसपास के लोगों को भी बताती हूं।
इलाज के दौरान सकारात्मक बदलाव आयाः आशा रुक्मिणी देवी कहती हैं, इलाज के दौरान सरस्वती देवी के व्यवहार में बहुत ही सकारात्मक बदलाव आया। आमतौर पर कोई भी बीमार व्यक्ति जल्द ठीक होने का प्रयास करता है, लेकिन सरस्वती देवी को जब से पता चला कि उन्हें टीबी है, तभी से वह इसके कारणों और उपाय के बारे में जानने की कोशिश करने लगीं। वह बार-बार मुझसे क्या खाना है, इसके बारे में पूछती रहती थीं। इसी का नतीजा है कि अब वह न सिर्फ घर के लोगों के पौष्टिक भोजन के बारे में ख्याल रखती हैं, बल्कि पड़ोस के लोगों को भी जागरूक करती हैं। कटोरिया रेफरल अस्पताल के लैब टेक्नीशियन सुनील कुमार कहते हैं कि जिस तरह का परिवर्तन सरस्वती देवी में आया है। अगर ऐसा ही अन्य ठीक होने वाले टीबी मरीजों में होता है तो क्रांति आ जाएगी और जिले को टीबी से मुक्त होने से कोई रोक नहीं सकेगा।
रिपोर्टर
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Swapnil Mhaske